My Blog List

Friday, January 25, 2013

सोम शर्मा की पित्रभक्ति भाग १

शिव शर्मा नामक ब्राह्मण ने अपने पुत्र सोमशर्मा से कहा,”पुत्र,तुम मेरे बड़े आज्ञाकारी हो!मैं इस समय तुम्हे यह अमृत का घड़ा दे रहा हूँ,तुम सदा इसकी रक्षा करना!मैं तुम्हारी माता के साथ तीर्थयात्रा करने जाऊँगा!” यह सुनकर सोमशर्मा ने कहा’पिता श्री,ऐसा ही होगा!” बुद्धिमान शिवशर्मा सोमशर्मा के हाथों में वह घड़ा देकर वहां से चल दिएऔर दस वर्षों तक निरंतर तपस्या में लगे रहे! धर्मात्मा सोमशर्मा दिन-रात आलस्य त्याग कर उस अमृत कुम्भ की रक्षा करने लगे!दस वर्षों के पश्चात शिवशर्मा पुनः लौटकर वहां आये!
ये माया का प्रयोग कर के पत्नी सहित कोढ़ी बनगए! जैसे वे स्वयं कुष्ठरोग से पीड़ित थे,उसी प्रकार उनकी इस्त्री भी थी! दोनों ही मांस पिंड के सामान त्याग देने योग्य दिखाई देते थे! वे धीरचित्त ब्राह्मण महात्मा सोमशर्मा के समीप आये!वहां पधारे हुवे माता-पिता को सर्वथा दुःख से पीड़ित देख कर महायशस्वी सोमशर्मा बड़े दुखी हुवे! भक्ति से उनका मस्तक झुक गया! वे उन दोनों के चरणों में गिर गए और बोले-पिता जी! मैं दुसरे किसी को ऐसा नहीं देखता जो तपस्या,गुणों और पुण्य से युक्त होकर आपकी समानता कर सके फिर भी आपको यह क्या हो गया?विप्रवर! संपूर्ण देवता सदा दास की भांति आपकी आज्ञा में लगे रहते हैं! वे आपके तेज से खिंच कर यहाँ आ जाते हैं आप इतने शक्तिशाली हैं तो भी किस पाप के कारण आपके शारीर में यह पीड़ा देने वाला रोग हो गया? ब्राह्मणश्रेष्ठ! इसका कारण बताइए! यहमेरी माता भी पुन्यवती  है, इसका पुण्य महान है,यह पातिव्रत धर्म का पालन करने वाली है! यह अपने स्वामी की कृपा से समूची त्रिलोकी को भी धारण करने में समर्थ है,ऐसी मेरी माता क्यों इस कष्टकारी कुष्ठरोग का दुःख भोग रही है?
शिवशर्मा बोले---महाभाग! तुम शोक न करो; सबको अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता हैक्योंकि मनुष्य प्रायः पूर्वजन्म कृत पाप और पुन्यमय कर्मों से युक्त हो कर दुःख सुख भोगता है! अब तुम शोक छोड़ कर हमारे घावों को धोकर साफ़ करो!
पिता का यह शुभ वाक्य सुनकर महायशस्वी सोमशर्मा ने कहा----“आप दोनों पुन्यतामा हैं; मैं आपकी सेवा अवश्य करूंगा! माता पिता की सेवा के अतिरिक्त मेरा और कर्त्तव्य ही क्या है!” सोमशर्मा उन दोनों के दुःख से दुखी थे! वे माता पिता के मल-मूत्र तथा काफ आदि धोते! अपने हाथों से उनके चरण आदि पखारते और दबाया करते थे! उनके रहने और नहाने आदि का प्रबंध भी वे पूर्ण भक्ति के साथ स्वयं ही करते थे! विप्रवर सोमशर्मा बड़े यशस्वी,धर्मात्मा और सत्पुरुषों में श्रेष्ठ थे!                            

No comments: