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Monday, August 27, 2012

श्री कृष्ण चरण दर्शन भाग २

      

                             श्री कृष्ण चरण दर्शन भाग 2  

  1. भगवान् के चरणों का दर्शन करने पर हमें वह कथा स्मरण हो आती है जब वामन अवतार में बलि की भूमि को नापते समय आपके चरणों से श्री गंगा जी निसृत हुई थी जिसे ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया था और उस चरणोदक से शिव जी का अभिषेक कर दियातब महादेव जी ने उस गंगा रुपी चरणोदक को अपनी जटाओं में रोक लिया था
  2. आपके चरणों में शंख,चक्र ,गदा और पद्म का दर्शन होता है! शंख से हमें वह महाभारत का युद्ध स्मरण हो आता है जहाँ आपने अपने पाञ्चजन्य नामक शंखबजा कर उस की तुमुल ध्वनी के द्वारा कौरवों के ह्रदय विदीर्ण कर दिए थे!एक बार जब आप अपने संदीपनी गुरु की पत्नी की इच्छा पूर्ण करने हेतु उनका मृतक पुत्र लाने के लिए समुद्र के पास गएथे! वह बालक स्नान करने के लिए सागर पर गया था किन्तु वहीँ डूब गया  था!जब भगवन उससे उस बालक को लौटाने को कहते हैं तो सागर ने उत्तर दिया की वोह बालक मैंने नहीं लिया किन्तु मेरे पेट में एक शंख चूढ़ नामक दैत्य शंख के खोल में रहता है संभवतः वह बालक उसी ने लिया होगा!श्री कृष्ण और बलराम जी का उस दैत्य से घोर युद्ध हुआ जिससे अंत में वह राक्षस मारा गया लेकिन उसके पास भी बालक नहीं मिला!उस दैत्य से ही श्री कृष्ण भगवान् को यह पाञ्चजन्य नामक शंख प्राप्त हुआ!  

Friday, August 24, 2012

श्री मद्भागवत में संतों के अपमान के परिणाम

                     

                          श्री मद्भागवत में संतों के अपमान के परिणाम                                                                                                          


श्री मद भागवत महापुराण का अध्ययन करने पर अनेकों भाव सबके मन में आते हैं!इसी प्रकार एक भाव यह भी लिया जा सकता हैकि इस पुराण में धर्मानुसार चलने वाले साधकों को कभी  भी किसी भी स्थिति में संत महापुरुषों का निरादर नहीं करना चाहिए !यहाँ इसके कई उदहारण देकर समझाया गया है!

  1. सबसे पहले ब्राह्मण आत्मदेव की पत्नी धुन्धुली ने अपने पति के द्वारा लायी हुई संत प्रसादी की उपेक्षा करते हुवे उसे गाय को डाल दिया जिसके कारण उन्हें अपने पति सहित पुत्र के द्वारा महान दुखों का सामना करना पड़ा!
  2. महाराज परीक्षित जी के द्वारा भूख प्यास से बेचैन हो कर थके होने पर शमीक मुनि के  गले में मृत सर्प डाले जाने के कारण उन्हें रिशिपुत्र के द्वारा श्रापित होना पड़ा था!
  3. एक बार जब सनक सनकादिक मुनीश्वर भगवान् नारायण के दर्शनार्थ वैकुण्ठ गए तो जय विजय ने उनका मार्ग रोका और कठोर वचनों से संतों का अपमान किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें रिशिओं के क्रोध का भाजन बनकर वैकुण्ठ से मृत्युलोक में गिरना पड़ा और असुर योनी में जनम लेना पड़ा!
  4. राजा वेन को संतों का तिरस्कार करने पर जीवन से हाथ धोना पड़ा था!
  5. अपनी सत्ता के मद में चूर हो कर एक बार देवराज इन्द्र ने देवगुरु बृहस्पति को खड़े हो कर प्रणाम न करके अप्सराओं का नृत्य देखते रहने पर स्वर्ग से बहिष्कृत होना पड़ा था तथा असुरों ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर ली थी!
  6. असुरराज हिरान्यकश्यिपू  ने जब अपने नारायण भक्त पुत्र प्रहलाद को अधिक कष्ट दिए तो उसे नरसिंह भगवन के हाथों दण्डित होना पड़ा था!
  7. पाण्डेय नरेश इन्द्रद्युम्न ने एक बार अगस्त्य मुनि का यथोचित सम्मान नहीं किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें गज योनी में आना पड़ा था!
  8. एक बार दुर्वासा जी ने अपनी तपस्या के मद में आकर नारायण भगवान् के सच्चे भक्त सूर्य वंशी महाराज अम्बरीश पर कृत्या छोड़ी जिससे चक्र सुदर्शन उनके पीछे पड़  गया था!
  9. श्री कृष्ण के साम्ब आदि पुत्रों ने भी संत परीक्षा लेकर उनका अपमान किया था जिससे पूरा यदुवंश एकमूसल के द्वारा और आपसी कलह के कारण नष्ट हो गया!

१० कुबेर के पुत्र तथा भगवान् शिव के अनुचर मणिग्रीव और नलकूबर अपने रूप तथा सत्ता के मद में चूर होकर मदिरा पीकर अप्सराओं सहित नदी में नग्न होकर जलक्रीडा कर रहे थे। एकाएक देवृशी नारदजी वहां आ पहुंचे.उनको  भी देख कर उन दुष्टों ने स्वयं को संभाला नहीं अपितु नारद जी पर भी मदिरा डालने लगे जिससे कुपित होकर ऋषि ने उन्हें नन्द बाबा के घर यमलार्जुन के वृक्ष बनने का श्राप दिया!

Tuesday, August 21, 2012

श्री मद्भागवत में विभिन्न गीताओं का संग्रह

                        श्री मद भागवत में विभिन्न गीताओं का संग्रह 

       श्री मद्भागवत महापुराण में अनेक गीताओं  का संग्रह पढने को मिलता है!
1 सर्वप्रथम श्री मद्भागवत के महात्म्य में गोकर्ण गीता का दर्शन होता है जिसमे महात्मा गोकर्ण भाई धुंधकारी
के द्वारा सताए जाने पर अपने पिता आत्मदेव को आत्मज्ञान देते हैं!

2 तृतीय स्कंध में कपिल गीता का सुन्दर वर्णन है जिसमे भगवन कपिल अपनी माता देवहूति को तत्वज्ञान देते हैं!
3 पंचम स्कंध में ऋषभ गीता का दर्शन होता है जिसमे भगवान ऋषभ अपने भारत आदि सौ पुत्रों को ज्ञान देते हैं!
4 हंस गीता में भगवान नारायण हंस अवतार में सनकादिक मुनियों को ज्ञान देते हैं!

5 अवधूत गीता में भगवन दत्तात्रेय महाराज यदु को ज्ञान देते हैं!

6 उद्धव गीता में जो की नवं स्कंध में आती है भगवान् श्री कृष्ण स्वधाम गमन से पहले उद्धव को तत्वज्ञान देते हैं जो की पठनीय है!

Sunday, August 5, 2012

श्री कृष्ण चरण दर्शन भाग १

                                    श्री कृष्ण चरण दर्शन भाग 1                   

     सभी पुरानो के पुराणशिरोमणि श्री मद भागवत महापुराण के त्रितीयस्कंध में भगवान् कपिल  माता देवहूति को ध्यान की विधी समझाते हैं की हमें नारायण भगवान् का ध्यान चरणों से आरम्भ करते हुवे मुखारविंद तक करना चाहिए1 
    सर्वप्रथम  हमभगवान् के चरणों का दर्शन करते हैं1. चरणों का दर्शन करते ही हे प्रभु हमें शंख चक्र गदा और पदम् का स्मरण हो आता है1 आपके चरण पुष्प से भी अधिक कोमल हैं मुझेवह कथा स्मरण आती है जिसमे एक बार ग्रहण काल में कुरुछेत्र में सभी यदुवंश ,वृश्निवंशी कुरु,मागध,पांचाल आदि अनेक देशों के लोग स्नान के लिए एकत्रित हुवे थे! इसी समय में श्री राधिका जी अपनी सभी सखियों सहित एवं सब गोप ग्वाल आदि भी कुरुछेत्र पधारे थे! भगवान् श्रीकृष्ण अपनी अष्ट पटरानियों  सहित पधारे थे माता रुक्मिणी जी श्री राधा रानी का दर्शन करने की इच्छा  से उनके शिविर में गयी और साथ में भेंट स्वरुप एक ग्लास गरम दूध का भी ले गयी! श्री राधा रानी ने बड़े भाव से आगे बढ़कर माँ रुक्मिणी जी का स्वागत किया! रुक्मिणी जी ने उन्हें भेंट के रूप में दूध पीने को कहा राधा रानी बोली की जब से गोविन्द ब्रज छोड़ कर गए उन्होंने दूध पीना   ही छोड़ दिया है किन्तु जब रुक्मिणी जी ने यह कहा की यह दूध तो श्री गोविन्द की ही  प्रसादी है इतना सुनना था की राधा रानी एक सांस में ही सारा गर्म दूध पी गयी! 
     रात्रि में रुक्मिणी जी जब भगवान् के श्री चरण दबा रही थी तो भगवान् कराहनेlलगे माता ने देखा की भगवान् के चरणों में छाले पड़े थे!उन्होंने श्री गोविन्दसे इनका कारण पूछा तो वे कोई उत्तर न दे पाए किन्तु गोविन्द ने भी माता से उनके दिन के विषय में पूछा माता ने राधा रानी से भेंट की सब बातें विस्तारपूर्वक कही !कृष्ण बोले तुमने गरम दूध राधा को पिलाया!मैं उनकेहृदय में निवास करता हूँ!गरम दूध से राधा के ह्रदय में पीड़ा होने से ही मेरे पैरों मेंछाले पड़े हैं!माता रुक्मिणी तुरंतही राधा रानी से माफ़ी मांगने भागी !