श्री मद्भागवत में संतों के अपमान के परिणाम
श्री मद भागवत महापुराण का अध्ययन करने पर अनेकों भाव सबके मन में आते हैं!इसी प्रकार एक भाव यह भी लिया जा सकता हैकि इस पुराण में धर्मानुसार चलने वाले साधकों को कभी भी किसी भी स्थिति में संत महापुरुषों का निरादर नहीं करना चाहिए !यहाँ इसके कई उदहारण देकर समझाया गया है!
- सबसे पहले ब्राह्मण आत्मदेव की पत्नी धुन्धुली ने अपने पति के द्वारा लायी हुई संत प्रसादी की उपेक्षा करते हुवे उसे गाय को डाल दिया जिसके कारण उन्हें अपने पति सहित पुत्र के द्वारा महान दुखों का सामना करना पड़ा!
- महाराज परीक्षित जी के द्वारा भूख प्यास से बेचैन हो कर थके होने पर शमीक मुनि के गले में मृत सर्प डाले जाने के कारण उन्हें रिशिपुत्र के द्वारा श्रापित होना पड़ा था!
- एक बार जब सनक सनकादिक मुनीश्वर भगवान् नारायण के दर्शनार्थ वैकुण्ठ गए तो जय विजय ने उनका मार्ग रोका और कठोर वचनों से संतों का अपमान किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें रिशिओं के क्रोध का भाजन बनकर वैकुण्ठ से मृत्युलोक में गिरना पड़ा और असुर योनी में जनम लेना पड़ा!
- राजा वेन को संतों का तिरस्कार करने पर जीवन से हाथ धोना पड़ा था!
- अपनी सत्ता के मद में चूर हो कर एक बार देवराज इन्द्र ने देवगुरु बृहस्पति को खड़े हो कर प्रणाम न करके अप्सराओं का नृत्य देखते रहने पर स्वर्ग से बहिष्कृत होना पड़ा था तथा असुरों ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर ली थी!
- असुरराज हिरान्यकश्यिपू ने जब अपने नारायण भक्त पुत्र प्रहलाद को अधिक कष्ट दिए तो उसे नरसिंह भगवन के हाथों दण्डित होना पड़ा था!
- पाण्डेय नरेश इन्द्रद्युम्न ने एक बार अगस्त्य मुनि का यथोचित सम्मान नहीं किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें गज योनी में आना पड़ा था!
- एक बार दुर्वासा जी ने अपनी तपस्या के मद में आकर नारायण भगवान् के सच्चे भक्त सूर्य वंशी महाराज अम्बरीश पर कृत्या छोड़ी जिससे चक्र सुदर्शन उनके पीछे पड़ गया था!
- श्री कृष्ण के साम्ब आदि पुत्रों ने भी संत परीक्षा लेकर उनका अपमान किया था जिससे पूरा यदुवंश एकमूसल के द्वारा और आपसी कलह के कारण नष्ट हो गया!
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