राज्धार्मा ने आगे कहा यहाँ से तीन योजन की दूरी पर मेरे राक्षसराज विरूपाक्ष नामक मित्र रहते हैं!मेरे कहने से आप उन्हीं के पास जाइये!निस्संदेह वे आपकी मनोवांछित कामनाएं पूरी करेंगे!उसके ऐसा कहने पर गौतम विरूपाक्ष के नगर की ओर चल दिया!अब उसकी थकावट मिट चुकी थी!रास्ते में मीठे फल खाता हुआ वह तेज़ी से आगे बढ़ने लगा!और उसके नगर में पहुँच गया!
विरूपाक्ष को उसके मंत्रियों ने सूचना दी की आपके मित्र ने अपने एक प्रिय अतिथि को आपके पास भेजा है!समाचार पाते ही राजा ने उसको बुला लाने की अनुमति दे दी!गौतम सेवकों सहित शीघ्र ही राजमहल में जा पहुंचा!राजा ने उससे उसका नाम,गौत्र और आने का प्रयोजन आदि पूछा!ब्राह्मण बोला मेरा नाम गौतम है!मेरा जनम तो हुआ मध्य प्रदेश मेंहुआ मगर मैं भीलों के प्रदेश में रहता हूँ!मेरी स्त्री भी शुद्र जाती की है और मुझसे पहले दुसरे की पत्नी रह चुकी है!यह सुनकर राक्षसराज मन ही मन सोचने लगा की --क्या करना चाहिए?यह जन्म से तो ब्राह्मण है और साथ ही राज्धर्मा का सुहृद है!उन्होंने ही इसे मेरे पास भेजा है!अतः उनका प्रिय कार्य अवश्य करूंगा! आज कार्तिकी पूर्णिमा है ,आज के दिन मेरे यहाँ हजारों ब्राह्मण भोजन करेंगे !इसे भोजन कराकर धन दे देना चाहिए!
तदन्तर,भोजन के समय हजारों की संख्या में विद्वान ब्राह्मण स्नान करके रेशमी वस्त्र पहने वहां आ पहुंचे!राजा के सेवकों ने जमीन पर कुशों के सुन्दर आसन बिछा दिए!जब ब्राह्मण उन पर बैठ गए तो राजा विरूपाक्ष ने उनका विधिवत पूजन आदि किया!सबको चन्दन निवेदन करके फूल मालाएं पहनाई!इसके बाद उसने हीरों से जड़ी हु थालियों में घी से बने हुए मीठे पकवान परोसकर उनके आगे रख दिए!भोजन के बाद ब्राह्मणों के सामने रत्नों की ढेरी लगाकर विरूपाक्ष ने कहा-ब्राह्मणों !आप लोग अपनी इच्छा और शक्ति अनुसार इन रत्नों को उठा लें और जिसमें आपने भोजन किया है,उस स्वर्णमय पात्र को भी अपने साथ लेते जायें !आज दिनभर आप लोगों को राक्षसों से कहीं कोई भय नहीं है,मौज करते हुए अपने अपने स्थानों को चले जाएँ!देर न करें!
यह सुनकर ब्राह्मण लोग उत्तम उत्तम रत्नों को लेकर चारों दिशाओं कीओर भाग चले!गौतम भी स्वर्ण का भारी बोझ लेकर जल्दी जल्दी चलता हुआ बरगद के वृक्ष के पास आ गया!वह बड़ी कठिनाई से उस भार को ढो रहा था !थकान से उसे भूख प्यास भी लग आई थी!राज्धर्मा ने पंखों से हवा कर के उसकी थकावट दूर की और उसके लिए भोजन का प्रबंध किया!भोजन और विश्राम करने के बाद गौतम ने सोचा -मैंने लोभवश स्वर्ण का भारी बोझ उठा लिया है!अभी दूर जाना हैऔर रास्ते में खाने के लिए भी मेरे पास कुछ नहीं है क्यों न मैं इस राज्धर्मा पक्षी कोही मारकर अपने साथ ले लूं और शीघ्रता पूर्वक यहाँ से चल दूं!
उस समय वह पक्षी गौतम पर विश्वास कर के उसी के पास सो रहा था!उधर वह दुष्ट और कृत्घन (किये हुए उपकार को न मानने वाला )उसे मार डालने की साजिश रच रहा था!उसके सामने ही आग जल रही थी! उसी में से उसने एक जलती हुई लकड़ी निकाल कर निश्चिन्त सोते हुए राज्धार्मा को मार डाला!उसने मरे हुए पक्षी के पंख और बाल नोचकर आग में पकाया और साथ में ले लिया!फिर सोने की गठरी सर पर लाद कर बड़ी तेज़ी घर की और चल पड़ा!दूसरे दिन विरूपाक्ष ने अपने पुत्र से कहा-बेटा!आज पक्षी राज राजधर्म का दर्शन नहीं हुआ!वे प्रतिदिन प्रातःकाल मुझसे मिलने को आते थे!दो संध्याएँ बीत गयीं हैं लेकिन वे मेरे घर नहीं पधारे?तुम पता लगाओ!कहीं ऐसा न हो वह अधम ब्राह्मण उन्हें मार डाले!वह बड़ा निर्दयी और दुराचारी जान पड़ता था!नीच गौतम यहाँ से लौटकर फिर उन्हीं के पास गया था!तुम शीघ्रता से राज्धार्मा के स्थान पर जाओ और पता लगाओ की वे जीवित हैं भी या नहीं?
पिता की ऐसी आज्ञा पाकर जब वह निर्धारित स्थान पर गया तो वहां राज्धार्मा का कंकाल पड़ा दिखाई दिया!यह देखकर राक्षस का पुत्र रो पड़ा और पूरी शक्ति के साथ गौतम का पीछा किया!थोड़ी ही दूरी पर उसने गौतम को पकड़ लिया!उसके साथ ही पक्षी की पंखों और हड्डियों से रहित लाश भी मिल गयी!तदन्तर राक्षसों ने गौतम को पक्षी के शव सहित विरूपाक्ष राक्षस के सामने प्रस्तुत किया!मित्र की यह दशा देख कर राजा विरूपाक्ष मंत्रियों और पुरोहित सहित फूट फूट कर रोने लगा!राज महल में बड़ा कोहराम मचा!सारे नगर में मातम छा गया!तदन्तर,राजा ने कुपित हो कर कहा-बेटा!इस पापी का वध कर डालोऔर सारे राक्षस इसके मांस के टुकड़े बांटकर खा लो!
राक्षसराज के इस प्रकार कहने पर भी राक्षसों को उस पापी का मांस खाने की इच्छा नहीं हुई!उन्होंने सर झुका कर प्रणाम करते हुए कहा-महाराज!आप हम लोगों को इस का पाप भक्षण करने को मत दीजिये!राजा ने कहा -बहुत अच्छा!तुम लोग इसपापी के टुकडे टुकडे करके लुटेरों को दे दो!राक्षस आज्ञा पाते ही हाथ में त्रिशूल लेकर उसपापी पर टूट पड़े और उसके टुकडे टुकडे कर के लुटेरों को देने लगे किन्तु तब लुटेरोंने भी यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मांसाहारी जीव भी कृतघ्न का मांस नहीं खाते!शराबी,चोर,प्रतिज्ञा भंग करने वाले मनुष्य के लिए भी पाप से छूटने का प्रायश्चित बताया गया है किन्तु कृतघ्न के उद्धार का कोई उपाय नहीं कहा गया है!
तदन्तर,विरूपाक्ष ने राज्धार्मा पक्षी के लिए एक चिता तैयार करवाई!फिर पक्षी की लाश को उसमे रख कर उसमे आग लगवा दी और विधिपूर्वक उसका दाह कर्म संपन्न किया!उसी समय दक्ष कन्या सुरभि देवी वहां आई और आसमान में ऊपर खड़ी हो गयी!उनके मुख से दूधमिश्रित झाग निकल कर राज्धर्मा की चिता पर गिरा और उसके स्पर्श से वह फिर से जीवित हो उठा!वह उड़ कर विरूपाक्ष के पास पहुंचा और दोनों मित्र गले मिले!इतने में ही देवराज इन्द्र भी विरूपाक्ष के नगर में आ पहुंचे और उससे बोले की बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम्हारे द्वारा राज्धर्मा को जीवन मिला!इसके बाद राज्धर्मा ने इन्द्र को प्रणाम करके कहा-देवेन्द्र!यदि आपकी मुझ पर कृपा हो तो मेरे मित्र गौतम को जीवित कर दीजिये!इन्द्र ने उसकी बात मान ली और अमृत छिड़क कर उस ब्राह्मण को जीवित कर दिया!गौतम के जीवित होने पर राज्धर्मा ने प्रसन्नतापूर्वक उसे मित्र भाव से गले लगाया और उस पापी को धन सहित विदा कर के वह अपने स्थान पर आ गया
तदन्तर,भोजन के समय हजारों की संख्या में विद्वान ब्राह्मण स्नान करके रेशमी वस्त्र पहने वहां आ पहुंचे!राजा के सेवकों ने जमीन पर कुशों के सुन्दर आसन बिछा दिए!जब ब्राह्मण उन पर बैठ गए तो राजा विरूपाक्ष ने उनका विधिवत पूजन आदि किया!सबको चन्दन निवेदन करके फूल मालाएं पहनाई!इसके बाद उसने हीरों से जड़ी हु थालियों में घी से बने हुए मीठे पकवान परोसकर उनके आगे रख दिए!भोजन के बाद ब्राह्मणों के सामने रत्नों की ढेरी लगाकर विरूपाक्ष ने कहा-ब्राह्मणों !आप लोग अपनी इच्छा और शक्ति अनुसार इन रत्नों को उठा लें और जिसमें आपने भोजन किया है,उस स्वर्णमय पात्र को भी अपने साथ लेते जायें !आज दिनभर आप लोगों को राक्षसों से कहीं कोई भय नहीं है,मौज करते हुए अपने अपने स्थानों को चले जाएँ!देर न करें!
यह सुनकर ब्राह्मण लोग उत्तम उत्तम रत्नों को लेकर चारों दिशाओं कीओर भाग चले!गौतम भी स्वर्ण का भारी बोझ लेकर जल्दी जल्दी चलता हुआ बरगद के वृक्ष के पास आ गया!वह बड़ी कठिनाई से उस भार को ढो रहा था !थकान से उसे भूख प्यास भी लग आई थी!राज्धर्मा ने पंखों से हवा कर के उसकी थकावट दूर की और उसके लिए भोजन का प्रबंध किया!भोजन और विश्राम करने के बाद गौतम ने सोचा -मैंने लोभवश स्वर्ण का भारी बोझ उठा लिया है!अभी दूर जाना हैऔर रास्ते में खाने के लिए भी मेरे पास कुछ नहीं है क्यों न मैं इस राज्धर्मा पक्षी कोही मारकर अपने साथ ले लूं और शीघ्रता पूर्वक यहाँ से चल दूं!
उस समय वह पक्षी गौतम पर विश्वास कर के उसी के पास सो रहा था!उधर वह दुष्ट और कृत्घन (किये हुए उपकार को न मानने वाला )उसे मार डालने की साजिश रच रहा था!उसके सामने ही आग जल रही थी! उसी में से उसने एक जलती हुई लकड़ी निकाल कर निश्चिन्त सोते हुए राज्धार्मा को मार डाला!उसने मरे हुए पक्षी के पंख और बाल नोचकर आग में पकाया और साथ में ले लिया!फिर सोने की गठरी सर पर लाद कर बड़ी तेज़ी घर की और चल पड़ा!दूसरे दिन विरूपाक्ष ने अपने पुत्र से कहा-बेटा!आज पक्षी राज राजधर्म का दर्शन नहीं हुआ!वे प्रतिदिन प्रातःकाल मुझसे मिलने को आते थे!दो संध्याएँ बीत गयीं हैं लेकिन वे मेरे घर नहीं पधारे?तुम पता लगाओ!कहीं ऐसा न हो वह अधम ब्राह्मण उन्हें मार डाले!वह बड़ा निर्दयी और दुराचारी जान पड़ता था!नीच गौतम यहाँ से लौटकर फिर उन्हीं के पास गया था!तुम शीघ्रता से राज्धार्मा के स्थान पर जाओ और पता लगाओ की वे जीवित हैं भी या नहीं?
पिता की ऐसी आज्ञा पाकर जब वह निर्धारित स्थान पर गया तो वहां राज्धार्मा का कंकाल पड़ा दिखाई दिया!यह देखकर राक्षस का पुत्र रो पड़ा और पूरी शक्ति के साथ गौतम का पीछा किया!थोड़ी ही दूरी पर उसने गौतम को पकड़ लिया!उसके साथ ही पक्षी की पंखों और हड्डियों से रहित लाश भी मिल गयी!तदन्तर राक्षसों ने गौतम को पक्षी के शव सहित विरूपाक्ष राक्षस के सामने प्रस्तुत किया!मित्र की यह दशा देख कर राजा विरूपाक्ष मंत्रियों और पुरोहित सहित फूट फूट कर रोने लगा!राज महल में बड़ा कोहराम मचा!सारे नगर में मातम छा गया!तदन्तर,राजा ने कुपित हो कर कहा-बेटा!इस पापी का वध कर डालोऔर सारे राक्षस इसके मांस के टुकड़े बांटकर खा लो!
राक्षसराज के इस प्रकार कहने पर भी राक्षसों को उस पापी का मांस खाने की इच्छा नहीं हुई!उन्होंने सर झुका कर प्रणाम करते हुए कहा-महाराज!आप हम लोगों को इस का पाप भक्षण करने को मत दीजिये!राजा ने कहा -बहुत अच्छा!तुम लोग इसपापी के टुकडे टुकडे करके लुटेरों को दे दो!राक्षस आज्ञा पाते ही हाथ में त्रिशूल लेकर उसपापी पर टूट पड़े और उसके टुकडे टुकडे कर के लुटेरों को देने लगे किन्तु तब लुटेरोंने भी यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मांसाहारी जीव भी कृतघ्न का मांस नहीं खाते!शराबी,चोर,प्रतिज्ञा भंग करने वाले मनुष्य के लिए भी पाप से छूटने का प्रायश्चित बताया गया है किन्तु कृतघ्न के उद्धार का कोई उपाय नहीं कहा गया है!
तदन्तर,विरूपाक्ष ने राज्धार्मा पक्षी के लिए एक चिता तैयार करवाई!फिर पक्षी की लाश को उसमे रख कर उसमे आग लगवा दी और विधिपूर्वक उसका दाह कर्म संपन्न किया!उसी समय दक्ष कन्या सुरभि देवी वहां आई और आसमान में ऊपर खड़ी हो गयी!उनके मुख से दूधमिश्रित झाग निकल कर राज्धर्मा की चिता पर गिरा और उसके स्पर्श से वह फिर से जीवित हो उठा!वह उड़ कर विरूपाक्ष के पास पहुंचा और दोनों मित्र गले मिले!इतने में ही देवराज इन्द्र भी विरूपाक्ष के नगर में आ पहुंचे और उससे बोले की बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम्हारे द्वारा राज्धर्मा को जीवन मिला!इसके बाद राज्धर्मा ने इन्द्र को प्रणाम करके कहा-देवेन्द्र!यदि आपकी मुझ पर कृपा हो तो मेरे मित्र गौतम को जीवित कर दीजिये!इन्द्र ने उसकी बात मान ली और अमृत छिड़क कर उस ब्राह्मण को जीवित कर दिया!गौतम के जीवित होने पर राज्धर्मा ने प्रसन्नतापूर्वक उसे मित्र भाव से गले लगाया और उस पापी को धन सहित विदा कर के वह अपने स्थान पर आ गया
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